कोरोना मरीजों में 11 महीने बाद तक पाई गई एंटीबॉडी, मिल सकती है जिंदगीभर सुरक्षा: शोध
सेहतराग टीम
हाल ही में हुए ताजा शोध में पता चला है कि कोरोना वायरस के माइल्ड केसेस में एंटीबॉडी कोविड-19 संक्रमण खत्म होने के करीब एक साल बाद तक बनी रहती है। इस बारे में वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन के शोधकर्ताओं का कहना है कि महामारी की शुरुआत में कहा गया था कि कोरोना वायरस एंटीबॉडी बहुत जल्द खत्म हो जाती है जो कि भ्रामक है। शोधकर्ताओं ने कहा कि जिन लोगों में कोरोना वायरस का माइल्ड संक्रमण रहा हो उनके अंदर जीवनभर सुरक्षा रह सकती है।
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शोधकर्ताओं ने कहा कि उनकी जांच से पता चला है कि बोन मैरो में मौजूद इम्यून सेल्स अब भी एंटीबॉडी बना रहे हैं जबकि खून के अंदर उनका स्तर गिर गया है। शोध के नतीजे बताते हैं कि कोरोना से पीड़ित रहे मरीजों में इस वायरस को बेअसर करने वाली एंटीबॉडी 7 से 11 महीने बाद भी मौजूद है। शोध कर रही टीम ने कहा कि यही नहीं इस एंटीबॉडी से जीवनभर सुरक्षा मिल सकती है।
शोध के वरिष्ठ लेखक डॉक्टर अली इल्लेबेडी ने कहा, 'पहले ऐसी रिपोर्ट आई थीं कि एंटीबॉडी संक्रमण के कुछ दिनों बाद ही खत्म हो जाती है और मुख्यधारा की मीडिया ने इसका मतलब यह निकाल लिया कि रोग प्रतिरोधक क्षमता लंबे समय तक नहीं रहती है। लेकिन यह आंकड़ों की गलत व्याख्या थी। गंभीर संक्रमण के बाद एंटीबॉडी के स्तर का नीचे जाना सामान्य बात है लेकिन यह शून्य के स्तर तक नहीं पहुंच जाता है। एंटीबॉडी स्थिर हो जाती है।'
प्रफेसर अली इल्लेबेडी ने कहा कि हमने अपने शोध में पाया कि एंटीबॉडी बनाने वाली कोशिकाएं मरीज के अंदर पहली बार लक्षण आने के 11 महीने बाद तक बनी रहती है। ये कोशिकाएं जिंदा रहेंगी और व्यक्ति के जीवनभर में एंटीबॉडी बनाती रहेंगी। यह लंबे समय तक इम्यूनिटी के बने रहने का मजबूत साक्ष्य है। संक्रमण के दौरान कम समय तक जिंदा रहने वाली इम्यून कोशिकाएं तेजी से बनती हैं ताकि शुरुआती दौर की सुरक्षा देने वाली एंटीबॉडी शरीर में आ सके।
उन्होंने आगे कहा कि इन इम्यून सेल्स को लंबे समय तक जिंदा रहने वाले प्लाज्मा सेल्स कहा जाता है। संक्रमण के बाद ये रिजर्व में बने रहते हैं और इनमें से ज्यादातर प्लाज्मा सेल्स बोन मैरो के अंदर चला जाता है। यह शोध जर्नल नेचर में प्रकाशित हुआ। इस शोध में ऐसे 77 लोगों को शामिल किया गया जिनमें माइल्ड संक्रमण था। इनमें से केवल 6 लोगों को ही अस्पताल में भर्ती कराया गया था। वॉलंटियर्स ने हर 3 महीने पर अपने ब्लड सेंपल दिए।
शोध में पाया गया कि संक्रमण के पहले कुछ महीनों में एंटीबॉडी का स्तर गिर गया लेकिन वह खत्म नहीं हुआ। ये एंटीबॉडी स्थिर हो गए। इन मरीजों में 11 महीने बाद भी एंटीबॉडी पाई गई। शोधकर्ताओं ने कहा कि जिन लोगों में कोरोना वायरस का माइल्ड संक्रमण रहा हो उनके अंदर जीवनभर सुरक्षा रह सकती है। यह भी संभव है कि जिन लोगों में कोरोना वायरस का गंभीर संक्रमण हुआ है, उनके अंदर कम सुरक्षा रहेगी।
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